शनिवार, 27 मई 2017

KISSA SAHEED BHAGAT SINGH--RAGHBIR

किस्सा शहीदे आजम भगत सिंह
शहीद भगत सिंह का किस्सा उन दिनों का किस्सा है जब भारत पर अंग्रेजों का जुल्म -सितम जोरों पर था। यह कहानी उन दिनों की है जब सूरज की किरणें नित्य नये नये काले कानून लेकर आती थी। लूट , शोषण ,जुल्म और ज्यादतियों के खिलाफ अपना सब कुछ कुर्बान करने वाले हंसते हंसते फांसी के फंदे चूमने वाले क्रान्तिकारी वीरों की कहानी है यह।
   भूमि लगान उगाही करने के लिए जो फसल का 70 फीसदी तक हो सकता था,सारे गांव को ईक्ट्ठा करके बेइज्जत किया जाता था,बहु बेटियों के सामने लोगों को नंगा कर दिया जाता । किसी भी प्रकार के विरोध पर जेल में डाल दिया जाता या गोली मार दी जाती। पूरे पंजाब में माल उगाही के खिलाफ आन्दोलनों का जोर होता है , उस समय लायलपुर ;अब पाकिस्तान में   द्ध के बंगा गांव में सरदार अर्जुन सिंह के घर 27 सितम्बर 1907 की रात एक पुत्र जन्म लेता है जो हर तरह की लूट खसोट ,शोषण , जुल्म ज्यादती के विरोध में शोषण रहित समाज के लिए जिन्दगी का हर पल कुर्बान करते करते मात्र 23 साल की उम्र में हंसते हंसते ईंकलाब को बुलन्द करने के लिए फांसी के फन्दे पर अपने दोस्तों के साथ झूल जाता है। इस महान क्रान्तिकारी की मां होने का श्रेय श्रीमति विद्यावती को है। इसके दोनों चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में गिने जाते हैं।पूरे परिवार की देशभक्ति का असर भगतसिंह पर बचपन से ही गहरा होता जाता है।
    भगत सिंह व उनका बड़ा भाई जगत सिंह दोनों को गांव के स्कूल में दाखिल करवाया जाता है। परन्तु 11साल की उम्र में ही जगत सिंह का देहान्त हो जाता है। उच्च शिक्षा के लिए भगत सिंह को डी. ए. वी. स्कूल लाहौर भेजा जाता है। आजादी का आन्दोलन दिन प्रतिदिन जोर पकड़ता है तो अंग्रेजों का दमन चक्र भी उसी जोर से चलता है।13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जलियां वाला काण्ड होता है। उस समय भगत सिंह की उम्र 11 साल 6 महीने होती है। उस घटना ने बालक भगतसिंह के दिमाग में विद्रोह के अंकुर को एकदम से पौधे का रुप दे दिया। वो बालक भगतसिंह के जलियांवाले बाग से मिट्टी लाकर सुबह सायं उसकी पूजा करता है।
 सरदार  किशन सिंह और अजीत सिंह लोगों को अंग्रेजों के जुल्मों के बारे में बताते हैं किः-
  हिन्दुस्तान देश म्हारे की बात कदे थी न्यारी।
  नाश हो लिया कति देश का आगे अंग्रेज व्यापारी- टेक
1 प्रदेशी का राज बणा म्हारी करदी रे रे माटी
  ईज्जत के दो धलले हागे न्यूं होरी तबियत खाटी
  फूट गेरकै दूर करे या एक नीति न्यारी छांटी
  साहूकार मिलाए अपनी औड़ उननै भी जड़ काटी
  कोए जेल मैं कोए बारनै सब मारे लोग व्यवहारी।
2 जो कारीगर थे म्हारे देश के चौड़े मैं सिर तार दिए
  रेशम मलमल बुण्या करैं थे हाथ काट कै मार दिए
  पुलिस मिलिट ªी गाम गाम मैं सारै तम्बू डार दिए
  बरखिलाफ बोलण आले वे काले पानी तार दिए
  इस जोर जुल्म की टक्कर मैं खड़े होगे नर नारी।
3 जुल्मां मैं तै घाट ना घालैं ना होता दिखै टाला
  अपने आप जावै कोन्या बिन काढें म्ीारा दिवाला
  एकलाश करे बिन पार पड़ै ना रहै ज्यान का गाला
  खाग्ये खेत गोलिये रै तुम रटो राम की माला
  आंधा गधा वरु मैं चर रहया कित गई अक्कल थारी।
4 जिसनै कहैं सैं राम राज म्हारे देश मैं ल्यावेंगे
  आजादी की खातर हम अपनी बलि तक चढ़ावेंगे
  मुक्ति आली राही पागी सारा देश जगावेंगे
  एका करकै फौज बनावैं गोरयां नै मार भगावेंगे
  रघबीर सिंह छंद घड़ै के ना रहैगी लाचारी।
वार्ता- इन बातों को सुन लोग कहते हैं सरदार जी जिनके राज मैं सूरज नहीं छिपता उनसे टक्क्र लेना और जीतना क्या आसान है। किशन सिंह कहता है भाईयो अंग्रेजों ने हमारी जो हालत कर रखी है सबके सामने है। हमें पशुओं की तरह लाठियों से हांका जाता है। हमें इन्सान नहीं समझा जाता। हमारा भाईचारा छिन्न भिन्न किया जा रहा है। दुनिया की बहुत सी मिशालें हैं जब जब जुल्म बढ़ा लोग ईक्ðे हुये , लड़े और जीते हैं और इस जुल्म को खत्म करने का एकमात्र तरीका यही है-
  बुरे वक्त की बुरी कथा हो रही सै रे रे माटी।
  अंग्रेजां का राज देश पै चोगरदे कै लूटा पाटी-टेक
1 सात समन्दर पार चालकै लूटण खातर आये सैं
  कई ढाल के काले कानून म्हारे उप्पर लाये सैं
  फूट गेरकै न्यारे कर दिए कई कई घणे सताये सैं
  कोए पुचकारया कोए दुत्कारया पर लोग समझ ना पाये सैं
  चौगरदे कै कब्जा करग्ये के दिल्ली के गोहाटी।
2 ढाका आली मलमल नामी ओड़ै जुल्म कसूते तोल दिये
  हीरालाल के हाथ काट कै जुल्म के फाटक खोल दिये
  खान मिस्त्री नै फांसी देद्यो हुूक्म खुलाशे बोल दिये
  हम चाहवैं न्यूं रहणा होगा बजा देश मैं ढोल दिये
  समझण आाले थोड़े रहग्ये सै उनकै गात उचाटी।
3 भाईचारा पंचायत तोड़ दी पुलिस का पहरा बिठा दिया
  सरकार कहे वो सजा करैगा खौफ गहरा बिठा दिया
  आपस का इकलाश खोकै समाज का ढैहरा बिठा दिया
  गैरयां के हाथ नकेल म्हारी न्यूं होरी सै तबियत खाटी।
4 खेती उप्पर टैक्स घणा दुख पा रहया सै घणा किसान
  सौ मैं सतर देना होगा गोरयां नै करया ऐलान
  मींह बरसै चाहेकाल पड़ै देना होगा जरुर लगान
  रात अन्धेरी गाम छोड़ग्ये यो सै असली हिन्दुस्तान
  रघबीर सिंह कहै भैंस उसे की जिसकै हाथ सै लाठी।
वार्ता- लगातार पड़ते अकालों से किसानों की हालत खराब हो जाती है । एक दिन अंग्रेज अधिकारी कुछ सिपाहियों के साथ माल उगाही के लिए बंगा गांव में आता है । एक गरीब किसान हाथ जोड़ कर कहता है सरकार अगली फसल पर सारा दे दूंगातब तक के लिए माफी चाहता हूं। इतना सुनते ही अंग्रेज अफसर डण्डे से पिटाई करता है तो किसान सिर से पगड़ी उतार अधिकारी के पैरों की तरफ चलता है और प्रार्थना करता है कि-
        3
किसान की प्रार्थना। तर्ज - यशोमति मैया
    छः महीने की मोहल्लत दे दे फेर देद्यूं थारी उधार।
    पैर पकड़ कै माफी मांगूं धरदी मनै पागड़ी तार- टेक
1 तुम सुनियो मेरी अरदास-ना एक धेला तक मेरै पास
मेरी फसल का होग्या नाश-थम कुछ करल्यो सोच विचार।
2 फसल पछेती जाडे नै मारी-मनै होरी सै मुश्किल भारी
पाई पाई दयूंगा थारी- मैं कति करता ना इन्कार।
3 इसमैं ना सै मेरा खोट- चाहे मेरा दियो गल घोट
थारे पायां के म्हां गया लोट-मैं हो लिया कति लाचार।
4 रघबीर सिंह कहै खर्चा भारया-बड़ी मुश्किल तैं होवै गुजारा
भुलूं ना अहसान थारा- मनै बख्श दियो मेरी सरकार।
वार्ता- अंग्रेज अधिकारी की गर्जना और किसान की दुखभरी आवाज को सुन किशन सिंह और स्वर्ण सिंह आ जाते हैं , किसान को उठा कर कहते हैं ‘ भाई मेरे पगड़ी सम्हाल’, भीख मत मांग , अधिकारों के लिए लड़ । तूने तो पगड़ी उसी के पांव में रख दी जिसने हमारी ईज्जत -पगड़ी- को तार तार किया है। क्या कहते हैं कि-
  4-  किसान को समझाना
      पगड़ी सम्हाल जटा क्यों लोट गया पायां मैं।
      सन् उन्नीस सौ सात नै तेरै याद दिलावण आया मैं-टेक
1 वे गदरी बाबा आये- थे दिल मैं घणे उम्हाये
ना उल्टे कदम हटाये- था घणा जोश काया मैं
2 तूं सै वीरां की औलाद-क्यूं भूल गया मर्याद
उन्नीस सौ सात नै करले याद-वाहे पगड़ी ल्याया मैं।
  3   यो राजा जुल्मी सै प्रदेशी-करदी हालत पशुओं केसी
अधम बिचालै त्रिशंकु जैसी- खड़ा चारों औड़ लखाया मैं।
खोणा हो अंधेर- म्हारे कष्ट मिटैंगे फेर
4 रघबीर सिंह पै राखिए मेर-लिए मान तेरा मां जाया मैं।
वार्ता- स्वर्ण सिंह वहां खड़े किसानों को बताता है कि आज हमारी जो दुर्गति हो रही है वो राम ने नहीं इस विदेशी राज ने कर रखी है और हम उन्ही के सामने हाथ जोड़े खड़े हैं। इसको अच्छी तरह समझ लो अगर समस्या , दुखों को मिटाना है तो यह राज भी मिटाना होगा।
5    स्वर्ण सिंह का कहना
भारतवासी उठ जाग तूं ईब तक लुटया भतेरा।
दिन और रात कमावै फेर भी उज्जड़ सै तेरा डेरा- टेक
1 अन्न्दाता तेरा हाल देख यो हो रहा सै मोटा चाळा
जेठ दोफारी जा उपर कै जा सै पौ का पाळा
तन पै कपड़ा ना पेट मैं रोटी हुया ज्यान का गाळा
उमर बीतग्ई टोटे मैं यो मकड़ी आळा जाळा
हाड मांस तेरा पिसता रहै ज ैना हो एका तेरा।
2 ढंग देखल्यो मजदूरां का जो काम करैं कारखानां मैं
दस दस साल के बालक कमावैं आधे आधे आनां में
इसे तरियां चाल्या आवै पाछले कई जमानां में
हम भूखे कुछ मौज करैं यो फर्क घण इन्सानां मैं
दिन धोली मैं डाका पड़रया बण्या अंग्रेज लुटेरा।
3 देश म्हारा और धरती म्हारी अंग्रेज अीच मैं आये क्यूं
लूट लूट कै खाग्ये पापी कब्जे आड़ै जमाये क्यूं
रल मिल कै नै आवाज उठाओ तुम इतने घबराये क्यूं
मरण तैं आगै कुछ ना होणा थरे चेहरे मुरझाये क्यूं
पां पकड़ण तैं बात बणै ना क्यूं जात आपणी देरया।
4 रयां रयां करकै माफी मांगै के देगी सरकार तनै
हो लिया सत्यानाश कति जब धरी पगड़ी तार तनै
सब भाईयां की कीमत लादी कोण्या करया विचार तनै
रघबीर सिंह कहै इन गोरयां तैं खाणा चाहिये खार तनै
मंगल पांडे नै शुरु करी के कोन्या सै तनै बेरा।
वार्ता- सरकारी काम में दखल डालने के आरोप में किशन सिंह और स्वर्ण सिंह को गिरफतार कर लिया जाता है। बालक भगत सिंह अपनी मां से पूछता है - मां ये पुलिस वाले पिता जी और चाचा जी को क्यों ले गये? तो उसकी मां उसे  इधर उधर की बातों से बहलाना चाहती है परन्तु वो बालक भगत सिंह बार बार पूछता है और अपनी मां से विनती करता है-

         चाहिये मां तनै खोल बताणा,मनै कोन्या मतलब जाणा
                                तूं क्यूं मनै भकावै मां -टेक
1 या तो मैं भी जाण गया सै बात पहाड़ तैं भारी
भारत मां हो जिन्दाबाद या आवाज चोगरदै आरी
छारही क्यूं तेरै ंआज उदासी ,कोण्या बात जरा सी
                    क्यू ंना खोल सुणावै मां ।
2 सारे कðे होकै बोलैं थे हो भरत जिन्दाबाद
अंग्रेजो यो भारत छोड़ो क्यूंक र दिये बर्बाद
मेरै याद बात सैं सारी, ईब आगै तेरी सलाह री
                    क्यूं मेरा लहू जलावै मां ।
3 मेरे पिता जी आगै आगै गैल पुलिस का लारा
नारे लावैं गद्दी छोड़ो यो भारत देश हमारा
यो सारा भेद मनै बतारी, के चाहवै सै मेरा पिता री
                    क्यूं बात छुपावै मां।
    4      रोम रोम मैं छाग्या सै मेरे इन बोलां का रंग
इसे रंज मैं मरना हो दिखै सै इसा ढंग
रघबीर सिंह कहै नहीं आराम सै, बाण्डा हेड़ी जिसका गाम सै
                        कदे  ये छंद बनावै मां।
वार्ता- भगत सिंह की मां उसे बार बार समझाती है बेटा तूं अभी छोटा है परन्तु वह सवाल करता रहता है तो मां उसे बताती है कि तेरे पिता जी और दोनों चाचा आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और खोल कर भगत सिंह को समझााती है कि-
           ध्यान लगाकै सुणिये बेटा सुणा दयूं हाल तमाम तेरा
           लन्दन आले राज करैं सैं देश बण्या गुलाम तेरा- टेक
1 सन् सौलह सौ इस्वी मैं ईस्ट इन्डिया कम्पनी आई थी
व्यापार करैं और दंगे कराणा दोहरी नीति अपनाई थी
छोटी छोटी रियासत थीना किसे की सुणाई थी
थोड़े दिन मैं राज बणाग्ये कोन्या पार बसाई थी
    2      फेर चोगरदै फिरगे थे ना लाया किमै दाम तेरा।
लूट लूट कै म्हारी कमाई सब लन्दन पहुंचादी
कारीगर थे म्हारे देश के कति करदी बर्बादी
हाथ तलक भी काट दिये जो बुणैं थे मखमल खादी
पाछै रुक्का रोला होया जब आग फंूस मैं लादी
राजपाट सब इनका होग्या ना छोडया कोए गाम तेरा।
     3     हम दिन रात कमावैं सैं ये गोरे बैठे ठाली
इनकै धन की कमी नहीं म्हारे घर होये खाली
रोजाना टैक्स नये नये घर घर बढ़ी कंगाली
बोलण तक की नहीं आजादी हो रही सै घणी काली
भारत आले भरती करकै कर दिया सही इन्तजाम तेरा।
4 बड़े बडेरे कहते आये  म्हारे हिन्द नै आजाद करो
म्हारे देश नै आप सम्हालां मतना तुम बर्बाद करो
ईन्कलाब कहै जामता बच्चा पैदा इसी औलाद करो
हक चाहिये तो लड़ना सीखो नहीं कदे फरियाद करो
कदे रघबीर सिंह दिया करैगा दुनिया मैं पैगाम तेरा।
वार्ता- उन्ही दिनो सन् 1919 में रोलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह लीग का गठन करके महात्मा गान्धी द्वारा चलाया असहयोग आन्दोलन चल रहा होता है । भगत सिंह 9वीं कक्षा में पढ़ते हुए स्कूल छोड़कर वालन्टियर बन इस आन्दोलन में कूद पड़ता है। परन्तु 1922 में इस आन्दोलन के चलते बिहार के किसान पुलिस ज्यादतियों के विरोध में चौरा चोरी थने पर हमला करते हैं , थाने में आग लगा दी जाती है जिसमें कई पुलिस वाले मारे जाते हैं। इस घटना को हिंसा का नाम देकर गान्धी जी आन्दोलन वापिस ले लेते हैं। चरम पर पहुंचे आन्दोलन को रोकने से सारा ही देश उदास निराश और दुखी होता हे। भगत सिंह को भी निराशा होती है। परन्तु कोई रास्ता नहीं मिलता तो फिर नैशानल कालेज में दाखिला ले लेता है ।यह कालेज उन दिनों देश भक्तों की नर्सरी कहलाता है। कालेज के प्रसिद्ध प्रोफैसर भाई परमानन्द और जयचन्द विद्यालंकार के माध्यम से यशपाल भगवतीचरण वोहरा और सुखदेव से भगत सिंह का सम्पर्क बन जाता है, जिनका उतरप्रदेश के क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल तथा अशफाक उल्ला खान से सम्पर्क  होता है। नैशनल कालेज के ये छात्र एक दिन भगत सिंह के घर आ मां विद्यावती से मिलकर अंग्रेजों से छुटकारा पाने की भावना को बताते हैं और बातचीत करते हैं कि-

        भारत की आजादी के हम होगे वीर सिपाही ।
        दे दे आर्शीवाद तेरा हम चाले जननी माई- टेक
  1    सब- उस धरती पै जन्म लिया इसका परण पुगाणा सै
दे आवाज बुलावै सै यो हमनै फर्ज निभाणा सै
म्हारे सिर पै आज धरया यो भारी बोझ बिराणा सै
आर्शिवाद तेरा चाहिये री फेर जल्दी वापस जाणा सै
    2 मां- कदम कदम पै मुश्किल आवै करणा हो घणा ख्याल
राह मुश्किल सै सोच कै चालियो कदे बिगड़ ज्या ताल
म्हारे देश का इन गोरयां नै लूट लिया धन माल
मजदूर और किसानां नै थम जगा दियो मेरे लाल
हिम्मत का हो राम हिमाती या दुनिया कहती आई।
    3 सब- आर्शिवाद म्हारे सिर पै तेरा हमनै कौण टोकले मां
डरते ना गोरे फिरंगियां तैं चाहे पूरी फोज झोंकले मां
होवैगी घमासान लड़ाई ईब छाती खूब ठोकले मां
मरज्यांगे इस देश की खातर हमनै कौण रोकले मां
आजादी नै ब्याह कै ल्यावैं म्हारी जब हो सफल कूमाई ।
   4  मां- थम तनम न धन वार चले मत करियो आराम सुणो
लिया संकल्प कुर्बानी का यो मेरा तम पैगाम सुणो
आजादी अनमोली होसै मेरे दिल का हाल तमाम सुणो
थारी क्रान्ति का इतिहास लिखैगा रघवीर सिंह वो नाम सुणो
डसका बाण्डाहेड़ी गाम सणो करैगा वीरां की कविताई।
वार्ता- मां से आर्शिवाद के बाद सभी पूरे जोश से संगठन के काम में जुट जाते है। इसी दौरान  भगत सिंह के परिवार के सभी सदस्य उसकी शादी की बात करते हैं। इस रिरूते के लिए लड़की भी देख ली होती है पर भगत सिंह इसे सही ना मानकर संगठन के साथियों से सलाह मश्विरा करता है। संगठन के समझदार साथी सचिन्द्र नाथ सान्याल से विचार कर भगत सिंह गणेश शंकर विद्यार्थी के पास कानपुर चला जाता है और अपने पिता को एक चिठी लिखता है-
’घर को अलविदा - हम देश सेवा करते हैं’
पूज्य पिता जी ,
नमस्ते !
मेरी जिन्दगी मकसदे आाला यानि आजादी -ए-हिन्द के असूल के लिए  

शनिवार, 2 नवंबर 2013

KRANTIKARI KARYAKARAM


















DHARAM AUR HAMARA SAWTANTARTA SANGRAM




सबसे उज्जवल नायक

शहीद भगत सिंह साम्राज्यवाद के खिलाफ भारतीय जनता के संघर्ष के सबसे उज्जवल नायकों में से एक रहे हैं. तेईस वर्ष की छोटी उम्र में शहीद होने वाले इस नौजवान को भारतीय जनता एक ऐसे उत्साही देशप्रेमी नौजवान के रूप में याद करती है जिसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद से समझौताविहीन लड़ाई लड़ी और अंत में अपने ध्येय के लिए शहीद हुआ. लेकिन अपेक्षाकृत कम ही लोग भगत सिंह एवं उनके क्रांतिकारी साथियों के विचारों से सही मायनों में परिचित हैं. भगत सिंह एवं उनके साथियों के लेख एवं दस्तावेजों का व्यापक रूप से उपलब्ध न होना इसकी एक बड़ी वजह रहा है और हमारे आज के शासकों के लिए भी यही मुफीद है कि भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों को जनता के सामने न आने दिया जाये. क्योंकि भगत सिंह के लेख एवं दस्तावेज मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण की व्यवस्था के बारें में सही और वैज्ञानिक समझ विकसित करते हैं और इसके खिलाफ जनता की लड़ाई को सही दिशा देते हैं. भगत सिंह उन विरले विचारकों में से थे जो उस समय ही यह बात जोर देकर कह रहे थे कि केवल अंग्रेजों के भारत से चले जाने से ही आम जनता की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा जब तक की इस शोषणकारी व्यवस्था को न बदला जाय. हम यहाँ भगत सिंह द्वारा लिखित लेखों एवं दस्तावेजों के लिंक पीडीएफ फॉर्मेट में प्रस्तुत कर रहे हैं. काफी कोशिशों के बाद भी ‘ड्रीमलैंड की भूमिका’ जैसे कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज छूट गये हैं. पाठकों से आग्रह है की यदि आपके पास यह लेख हो तो कृपया इसे कमेन्ट बॉक्स में प्रेषित कर दें.

SAHEED BHAGAT SINGH JANAM DIWAS-2013